कुवैत की धरती पर एक भीषण आग ने 49 लोगों की जान ली, जिसमें 42 भारतीय शामिल थे। इस हादसे में दरभंगा जिले के नैनाघाट गांव के कालू खान भी शहीद हो गए। कालू खान, जिनकी अगले महीने जुलाई में शादी थी, वो सपनों की बारात सजाने से पहले ही सदा के लिए दुनिया छोड़ गए। उनकी मौत ने एक परिवार को तोड़ दिया है, एक गांव को शोक में डुबो दिया है।
कालू खान, कुवैत में बीते 7 सालों से सेल्समैन का काम कर रहे थे। वो अपने परिवार के लिए रोजी कमाने गए थे, लेकिन हादसे ने उनकी जिंदगी की कहानी अधूरी कर दी। कालू के छोटे भाई शाहरुख, जो गुड़गांव में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, का कहना है कि उनके भाई एनबीटीसी बिल्डिंग में काम करते थे, जहां आग लगी थी। सुबह 11 बजे कंपनी के एचआर से उन्हें भाई की मौत की खबर मिली।
कालू की मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। उनकी मां का रो-रोकर बुरा हाल है। पत्नी, जिसने कभी सपने में नहीं सोचा था कि वो अपने दूल्हे को अंतिम विदाई देंगी, वो अश्रुधार में डूबी हुई हैं। कालू के छह भाई-बहन हैं। 2009 में उनके पिता का देहांत हो चुका था। बड़े भाई कतर में ड्राइवर का काम करते हैं।
कालू खान के सपने अब अधूरे रह गए हैं। वो शादी कर घर बसाना चाहते थे, अपने परिवार को खुशियां देना चाहते थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। कालू की शहादत ने एक बार फिर दिखा दिया है कि विदेशों में रोजगार की तलाश में जाने वाले भारतीयों को कितने खतरे झेलने पड़ते हैं।
भारत सरकार ने इस हादसे पर दुख जताया है और मृतकों के परिवारों को 2-2 लाख रुपए की सहायता देने की घोषणा की है। लेकिन क्या यह सहायता कालू खान के परिवार के उन घावों को भर पाएगी, जो उनके दिलों में हमेशा के लिए रह जाएंगे? क्या यह सहायता उनके जीवन की खोई खुशियों को वापस ला पाएगी?
कालू खान की शहादत हमें एक बार फिर सचेत करती है कि जीवन अनमोल है। हमें हर पल को संजोकर जीना चाहिए, अपने प्रियजनों के साथ प्यार के पल बिताने चाहिए। कालू खान अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी यादें हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी।
कालू खान, आपकी शहादत वीरता की गाथा है। आपने अपने परिवार और देश के लिए अपना बलिदान दिया है। आपको शत-शत नमन।
इस हादसे में शहीद हुए सभी भारतीयों को भी हमारी श्रद्धांजलि।