17 जुलाई, 2024 को कर्नाटक सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया, जिसमें राज्य के सभी निजी उद्योगों में "सी और डी" ग्रेड के पदों पर 100% कन्नड़ लोगों की नियुक्ति अनिवार्य कर दी गई। यह कदम कर्नाटक में रोजगार के परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है और कन्नड़ भाषी लोगों के लिए नए अवसर पैदा करता है।
- यह विधेयक सभी निजी उद्योगों, कारखानों और प्रतिष्ठानों पर लागू होगा।
- "सी और डी" ग्रेड के सभी पदों पर केवल कन्नड़ भाषी लोगों को ही नियुक्त किया जा सकेगा।
- यदि कोई उम्मीदवार कन्नड़ भाषा का ज्ञान रखता है लेकिन माध्यमिक विद्यालय प्रमाणपत्र नहीं है, तो उन्हें 'नोडल एजेंसी' द्वारा आयोजित कन्नड़ दक्षता परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।
- यदि योग्य स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो प्रतिष्ठानों को सरकार या उसकी एजेंसियों के सहयोग से उन्हें तीन साल के भीतर प्रशिक्षित करना होगा।
- यदि पर्याप्त संख्या में स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो प्रतिष्ठान छूट के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- प्रत्येक प्रतिष्ठान को नियमित रूप से नोडल एजेंसी को विधेयक के अनुपालन की रिपोर्ट करनी होगी।
विधेयक के पीछे का उद्देश्य
कर्नाटक सरकार का कहना है कि इस विधेयक का उद्देश्य कन्नड़ भाषी लोगों के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाना और उन्हें अपनी मातृभूमि में बेहतर जीवन जीने का अवसर प्रदान करना है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा, "हमारी सरकार कन्नड़ समर्थक है और हमारी प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण का ध्यान रखना है।"
विधेयक के संभावित प्रभाव
इस विधेयक के कर्नाटक में रोजगार के परिदृश्य पर कई तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं। कुछ संभावित प्रभावों में शामिल हैं:
- कन्नड़ भाषी लोगों के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि: यह विधेयक निश्चित रूप से कन्नड़ भाषी लोगों के लिए निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को बढ़ाएगा।
- स्थानीय प्रतिभाओं का विकास: विधेयक से स्थानीय प्रतिभाओं को विकसित करने और उन्हें उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित करने में मदद मिलेगी।
- अन्य राज्यों से आने वाले लोगों पर प्रभाव: यह विधेयक अन्य राज्यों से कर्नाटक में आने वाले लोगों के लिए रोजगार के अवसरों को कम कर सकता है।
- कानूनी चुनौतियां: विधेयक को संविधान के अनुरूप होने को लेकर कुछ कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
कर्नाटक सरकार का निजी क्षेत्र में कन्नड़ लोगों के लिए 100% आरक्षण का फैसला एक दूरगामी कदम है जिसके राज्य के रोजगार परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। विधेयक के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करने के लिए समय लगेगा, लेकिन यह निश्चित रूप से कर्नाटक में रोजगार के लिए प्रतिस्पर्धा को बदल देगा।