तिरुपति मंदिर के लड्डू प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलने की खबर ने धार्मिक समुदाय में भारी हड़कंप मचा दिया है। यह मामला न केवल आस्था पर चोट करता है, बल्कि इसे लेकर सियासी बखेड़ा भी शुरू हो गया है। आइए, इस विषय पर गहराई से विचार करें और जानें कि घी में मिलावट के पीछे का गणित क्या है।
तिरुपति लड्डू: श्रद्धा का प्रतीक
तिरुपति मंदिर का लड्डू प्रसाद सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का हिस्सा रहा है। इसे भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद मानकर श्रद्धालु बड़े उत्साह से ग्रहण करते हैं। लेकिन हाल ही में इस प्रसाद में जानवरों की चर्बी की मिली खबर ने आस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
मिलावट का कारण: कीमतों का खेल
घी में मिलावट का मुख्य कारण दूध और वनस्पति वसा के बीच की बड़ी कीमत का अंतर है। वर्तमान में, डेयरी भैंस के दूध का घी लगभग 460 रुपये प्रति किलो और गाय के दूध का घी 470 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। यदि हम पैकेजिंग और ट्रांसपोर्ट का खर्च जोड़ें, तो यह कीमत 485-495 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है।
बाजार में असामान्य मूल्य निर्धारण
हाल ही में, एआर डेयरी फूड प्राइवेट लिमिटेड ने तिरुपति देवस्थानम को मात्र 320 रुपये प्रति किलो की दर पर प्योर घी सप्लाई की। यह दर बाजार की सामान्य कीमतों से काफी कम है, जो यह दर्शाती है कि या तो घी की गुणवत्ता में समझौता किया गया है या फिर इसमें जानवरों की चर्बी का मिश्रण किया गया है।
घी में मिलावट का गणित
भारत में डेयरी उद्योग हर रोज लगभग 600 लाख किलो दूध खरीदता है। इनमें से 450 लाख किलो दूध बेचा जाता है, जबकि बाकी दूध से अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि निजी और सहकारी डेयरियों से औसतन 3.65 लाख टन घी का उत्पादन होता है। इस गणित से स्पष्ट है कि बाजार में कीमतों के असामान्य स्तर का सीधा असर घी की गुणवत्ता पर पड़ता है।
सियासी प्रतिक्रियाएँ
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इस मामले की जांच के लिए रिपोर्ट मांगी है। आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया है कि पिछले शासन में भी जानवरों की चर्बी का उपयोग किया गया था। टीडीपी के प्रवक्ता ने यह भी कहा कि इतने कम रेट पर गुणवत्ता वाले घी की आपूर्ति करना असंभव है।