Pitru Paksha 2024: हर साल पितृपक्ष में पितृ अपनी संतानों के बीच आकर रहते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. पितृपक्ष में आज द्वितीया तिथि का श्राद्ध किया जाएगा. आइए जानते हैं कि इस दिन किन लोगों का श्राद्ध किया जाता है.
Pitru Paksha 2024 Date: पितृपक्ष में हमारे पूर्वज 15 दिन के लिए धरती पर आते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं. पितरों को तर्पण देने और उनका श्राद्धकर्म करने के लिए ये 15 दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं. श्राद्ध का तात्पर्य श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है. सनातन मान्यता के अनुसार, जो परिजन अपनी देह त्यागकर चले जाते हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं. हर साल पितृपक्ष में पितृ अपनी संतानों के बीच आकर रहते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. पितृपक्ष में आज द्वितीया तिथि का श्राद्ध किया जाएगा. आइए जानते हैं कि इस दिन किन लोगों का श्राद्ध किया जाता है और इसमें तर्पण व पिंडदान की विधि क्या है.
द्वितीया तिथि पर किसका होगा श्राद्ध?
द्वितीया तिथि का श्राद्ध पितृपक्ष के दूसरे दिन किया जाता है. इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु हिंदू पंचांग के अनुसार द्वितीया तिथि को होती है. द्वितीया तिथि के श्राद्ध कर्म में मुख्य रूप से पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन कराने की परंपरा होती है. इस दिन परिवार के लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.
द्वितीया तिथि पर श्राद्ध कर्म की विधि
पिंडदान: आटे, चावल, या जौ से बने पिंड (गोल आकार के गोले) बनाए जाते हैं, जो पितरों को अर्पित किए जाते हैं.
तर्पण: जल में तिल मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है.
ब्राह्मण भोज: श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना और दक्षिणा देना महत्वपूर्ण माना जाता है.
ध्यान और प्रार्थना: आखिर में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ध्यान और प्रार्थना की जाती है. ताकि हमारे जीवन में सुख-शांति और संपन्नता सदैव बनी रहे.
पितृपक्ष के नियम और कर्म
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करते हैं. यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है. जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है. पितृपक्ष में जिस दिन पूर्वज के देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है. और उसी तिथि को किसी निर्धन या ब्राह्मण को भोजन भी कराया जाता है. इसके बाद पितृपक्ष के कर्मों का समापन हो जाता है.