दिल्ली में इस समय हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं। हवा में घुलता ज़हर हर सांस के साथ लोगों को बीमार कर रहा है। राजधानी का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 328 के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। यहां के लोग इस जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, और ये सिर्फ एक शहर का मसला नहीं, बल्कि हमारे जीने के हक पर सवाल है।
जैसे ही सर्दियों की शुरुआत होती है, दिल्ली में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ जाता है। हर साल की तरह इस बार भी हालात बदतर होते जा रहे हैं। लोगों के लिए घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। इस धुएं और धुंध में सांस लेना किसी चुनौती से कम नहीं।
विशेषज्ञों का कहना है कि हवा में बढ़ते प्रदूषण का कारण वाहनों का धुआं, निर्माण कार्यों की धूल, और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं हैं। हर साल इन कारणों से दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है, लेकिन समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की बजाय हर साल वही स्थिति लौटकर आ जाती है।
लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका सीधा असर पड़ रहा है। सांस संबंधी बीमारियों में तेजी से इजाफा हो रहा है। बुजुर्ग और बच्चे विशेष रूप से इस प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं। अस्पतालों में सांस की तकलीफ, खांसी और गले की समस्याओं से परेशान मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
यह सवाल उठता है कि क्या दिल्ली को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए कोई ठोस योजना बन पाएगी, या फिर लोग इसी तरह जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर रहेंगे?