हाल ही में हरियाणा में सेवानिवृत्त IAS अधिकारी राजेश खुल्लर की CPS (Chief Parliamentary Secretary) के रूप में नियुक्ति को लेकर एक विवाद पैदा हो गया है। शुरुआत में, कोर्ट ने उनकी नियुक्ति पर रोक लगाई थी, लेकिन मात्र चार घंटे के भीतर ही इस आदेश को पलट दिया गया। यह घटनाक्रम राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है और इसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
राजेश खुल्लर की नियुक्ति की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कई राजनीतिक दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। कुछ ने इसे सरकार की ओर से एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में देखा, जबकि अन्य ने इसे विवादास्पद बताया है। इस मामले में न्यायालय का हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि प्रशासनिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और नैतिकता का पालन होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट निर्देश दिया है कि किसी भी नियुक्ति में नियमों का पालन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर नियुक्ति प्रक्रिया में कोई खामी पाई जाती है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इस घटनाक्रम ने उन लोगों के लिए एक चेतावनी का काम किया है, जो अनियमितताओं में लिप्त हैं।
विपक्षी पार्टियों ने इस मामले में सरकार की नीयत पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि अगर सरकारी तंत्र इस तरह के विवादास्पद नियुक्तियों को बढ़ावा देता है, तो यह प्रशासन की विश्वसनीयता को प्रभावित करेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला केवल एक नियुक्ति का नहीं है, बल्कि यह प्रशासन में नैतिकता और पारदर्शिता की कमी को भी दर्शाता है।
इस प्रकार, राजेश खुल्लर की CPS नियुक्ति पर आए तात्कालिक फैसले ने हरियाणा की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह मामला यह दर्शाता है कि नियुक्तियों के संदर्भ में क्या प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं और उन पर कितना ध्यान दिया जाता है। इस घटनाक्रम के बाद, यह देखना होगा कि क्या सरकार और प्रशासनिक अधिकारी भविष्य में इस तरह के मामलों में अधिक पारदर्शिता और नैतिकता का पालन करते हैं या नहीं।